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हवा में सन् सन् / शमशेर बहादुर सिंह

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हवा में सन् सन्
      ज्योति के जो हरे तीखे बान
                  चल रहे हैं
सुलगते आकाश वन में:
लाल गौहर और ज़मुर्रद के निशान
उड़ रहे हैं।

आख़िर क्यों मुस्कुराते हैं शराबी अधर?

 वातावरण

हेम केसर से भरा है।


दिल कि सीने में तड़पता है, तड़पता है,
       जैसे
हवा में कोई सिसकता है।
सुर्ख़ फूल ओस में
     चुपचाप
    ढुलते चले जाते।
आख़िर किसलिए,
     प्राण में केसर बरसता है?
मधुरात
  यह
   इस तरह क्यों है?