भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने ख़्वाबों को सजाकर / चित्रा सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चित्रा सिंह |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अपने ख़्वाबों क…)
अपने ख़्वाबों को सजाकर
दुनिया की हाट में
जिस दिन सीख जाऊँगी
बोली लगवाना
उसी दिन से मिल जाए
शायद मुझे निजात
पर तब कहाँ बचेगा मेरा घर ?
मैं भी कहाँ बच पाऊँगी शायद...।