भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होली/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
Kavita Kosh से
Shubham katare (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:13, 28 सितम्बर 2010 का अवतरण
एक दूजे के अंग लगें तो होली है सबको लेकर संग चलें तो होली है
बच्चे तो शैतानी करते रहते हैं बूढ़े भी हुड़दंग करें तो होली है
औरों को तो रोज परेशां करते हैं अपनों को ही तंग करें तो होली है
चलते रहते रोज अजीवित वाहन पर गर्धव का सत्संग करें तो होली है
बनते हैं पकवान सभी त्यौहारों पर हर गुझिया में भंग भरें तो होली है
घोर विषमता भरे कष्टकर जीवन में मुसकाने का ढ़ंग करें तो होली है
नारिशील पर मर्यादा की सील लगी वही शील को भंग करें तो होली है
बच्चे बूढ़े प्रेम करें तो जायज है इसी काम को यंग करें तो होली है