भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्पर्श / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 5 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह=अंतहीन दौड़ / अमरजीत कौंके …)
साँवले
बहुत साधारण से
हाथ थे वे
जिन्हें
यह भी नहीं था मालूम
कि वे हाथ हैं
सृष्टि रचने वाले
दुनिया को
ख़ूबसूरत बनाने वाले
लेकिन अचानक
प्यार से लबालब दो होठों ने
उन हाथों को क्या छुआ
कि हाथ सिहर उठे
साँवले से
उन हाथों को
पहली बार एहसास हुआ
कि वे हाथ है
सृष्टि की
सब से अज़ीम वस्तु
हाथों को
पहली बार एहसास हुआ
कि वे हाथ हैं
सृष्टि को रचने वाले
दुनिया को
ख़ूबसूरत बनाने वाले ।।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा