भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने नहीं मरते / अमरजीत कौंके

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह=अंतहीन दौड़ / अमरजीत कौंके …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत बार देखे
इन आँखों ने सपने
और बहुत बार देखा
टूटते हुए उन्हें

चटखते देखा
फिर देखा टूटते
किरचों में बँटते हुए
और किरचों को आँखों में चुभते
देखा बहुत बार

किरचों को देखा
लहू में तैरते हुए
अंगों में चलते हुए
जिस्म की गहराईयों तक उतरते

फिर जिस्म में साँस लेते
देखी काँच के टुकड़ों की फसल
सपने किरचों में बँटते हुए
जिस्म में उगते
देखे कितनी ही बार

पर नयन हैं बावरे
कि सपने देखने की
आदत नहीं तजते

सपने नहीं मरते ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा