भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाहर अन्‍दर / लोग ही चुनेंगे रंग

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बाहर लू चलने को है
जो कमरे में बन्द हैं किस्मत उनकी

कैद में ही सुकून

खूबसूरत सपनों में लू नहीं चलती
यह बात और कि कमरे में बन्द
आदमी के सपने खूबसूरत नहीं होते

कोई है कि वक्त की कैद में है
बाहर लू चलने को है.