भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार के झरोखे न होते / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:52, 28 मई 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकारः रमा द्विवेदी

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

खुदा ने अगर दिल मिलाए न होते।
तो तुम, तुम न होते, हम, हम न होते॥

न ये हिम पिघलता, न नदियाँ ये बहतीं,
न नदियाँ मचलती, न सागर में मिलतीं,
सागर की बाहों में गर समाए न होते ।
तो तुम, तुम न होते, हम, हम न होते॥

न सागर यह तपता, न बादल ये बनते,
न बादल पिघलते, न जल-कण बरसते,
जल-कण धरा में गर समाए न होते ।
तो तुम, तुम न होते, हम, हम न होते॥

न ऋतुएँ बदलती, न ये फूल खिलते,
न तितली बहकती, न भौंरे मचलते,
अगर प्यार के ये झरोखे न होते ।
तो तुम, तुम न होते, हम, हम न होते॥

खुदा ने अगर दिल मिलाए न होते।
तो तुम, तुम न होते, हम, हम न होते॥