भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तपिश और धूप में हम पल रहे हैं/ सर्वत एम जमाल

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 16 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                  रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
                  संग्रह=
                  }}
                  साँचा:KKCatGazal

तपिश और धूप में हम पल रहे हैं
हमारे सर पे कब बादल रहे हैं

सफर में अब वही हैं सबसे पीछे
जो बैसाखी के बल पर चल रहे हैं

हमें तो जहनियत ही से घुटन थी
तुम्हें तो आदमी भी खल रहे हैं

किसी का सुख गंवारा है किसी को
जलन की आग में सब जल रहे हैं

खुदा जाने ये कैसी रोशनी है
कि सारे लोग आँखें मल रहे हैं

उन्हें ही उल्टी तस्वीरे दिखाओ
जो सारी उम्र सर के बल रहे हैं

नये अफकार सर्वत गैर मुमकिन
यहाँ तो जहन सदियों शल रहे हैं