भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़ी तफ़रीक पैदा हो गई है हर घराने में / संजय मिश्रा 'शौक'

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 16 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=संजय मिश्रा शौक संग्रह= …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                  रचनाकार=संजय  मिश्रा शौक   
                  संग्रह=
                  }}
                  साँचा:KKCatgazal


बड़ी तफरीक पैदा हो गयी है हर घराने में
ज़रा सी देर लगती है यहाँ दीवार उठाने में

ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं खुद घुटनों के बल बैठा हूँ तेरा कद बढाने में

न जाने लोग इस दुनिया में कैसे घर बनाते हैं,
हमारी जिन्दगी तो कट गयी नक्शा बनाने में

बलंदी से उतर कर सब यहाँ तक़रीर करते हैं
किसी को याद रखता है कोई अपने जमाने में

मुहब्बत है तो सूरज की तरह आगोश में ले लो
 ज़रा सी देर लगती है उसे धरती पे आने में