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बड़ी तफ़रीक पैदा हो गई है हर घराने में / संजय मिश्रा 'शौक'
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बड़ी तफरीक पैदा हो गयी है हर घराने में
ज़रा सी देर लगती है यहाँ दीवार उठाने में
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं खुद घुटनों के बल बैठा हूँ तेरा कद बढाने में
न जाने लोग इस दुनिया में कैसे घर बनाते हैं,
हमारी जिन्दगी तो कट गयी नक्शा बनाने में
बलंदी से उतर कर सब यहाँ तक़रीर करते हैं
किसी को याद रखता है कोई अपने जमाने में
मुहब्बत है तो सूरज की तरह आगोश में ले लो
ज़रा सी देर लगती है उसे धरती पे आने में