रचनाकार: केदारनाथ सिंह
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जैसे मुझे जानता हो बरसों से
देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो
मुझे देखा
तो कैसे लपका चला आ रहा है
मेरी तरफ़
पर अफ़सोस
कि चाय के लिये
मैं उसे घर नहीं ले जा सकता
'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से