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एक दफ़नाई हुई आवाज़ / परवीन शाकिर
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रचनाकार: परवीन शाकिर
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फूलों और किताबों से आरास्ता घर है
तन की हर आसाइश देने वाला साथी
आंखों को ठंडक पहुंचाने वाला बच्चा
लेकिन उस आसाइश, उस ठंडक के रंगमहल में
जहां कहीं जाती हूं
बुनियादों में बेहद गहरे चुनी हुई
एक आवाज़ बराबर गिरय: करती है
मुझे निकालो !
मुझे निकालो !
आरास्ता=सुसज्जित, गिरय:=विलाप