भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माली तुम्हीं फैसला कर दो / उदयप्रताप सिंह

Kavita Kosh से
Bharat wasi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:36, 19 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: अगर बहारें पतझड़ जैसा रूप बना उपवन में आएं माली तुम्हीं फैसला कर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर बहारें पतझड़ जैसा रूप बना उपवन में आएं

माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएं?


वातावरण आज उपवन का अजब घुटन से भरा हुआ है

कलियाँ हैं भयभीत फूल से, फूल शूल से डरा हुआ है

सोचो तो तुम, क्या कारण है दिल दिल के नज़दीक नहीं है

जीवन की सुविधाओं का बटवारा शायद ठीक नहीं है


उपवन में यदि बिना खिले ही कलियाँ मुरझाने लग जाएँ

माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएं?


यह अपनी-अपनी किस्मत है कुछ कलियाँ खिलती हैं ऊपर

और दूसरी मुरझा जातीं झुके-झुके जीवन भर भू पर

माना बदकिस्मत हैं लेकिन, क्या वे महक नहीं सकती हैं

अगर मिले अवसर अंगारे सी क्या दहक नहीं सकती हैं?


धूप रोशनी अगर चमन में ऊपर ऊपर ही बंट जाएँ

माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएं?


काँटे उपवन के रखवाले अब से नहीं ज़माने से हैं

लेकिन उनके मुँह पर ताले अब से नहीं ज़माने से हैं

ये मुँह बंद उपेक्षित काँटे अपनी कथा कहें तो किससे?

माली उलझे हैं फूलों से अपनी व्यथा कहें तो किससे?


इसी प्रश्न को लेकर काँटे यदि फूलों को ही चुभ जाएँ

माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएं?


सुनते हैं पहले उपवन में हर ऋतु में बहार गाती थी

कलियों का तो कहना ही क्या, मिटटी से खुशबू आती थी

यह भी ज्ञात हमें उपवन में कुछ ऐसे भौंरे आए थे

सारा चमन कर दिया मरघट, अपने साथ ज़हर लाए थे


लेकिन अगर चमन वाले ही भौंरों के रंग-ढंग अपनाएँ

माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएं?


बुलबुल की क्या है बुलबुल तो जो देखेगी सो गायेगी

उसकी वाणी तो दर्पण है असली सूरत दिखलाएगी

क्योंकि आज बुलबुल पर गाने को रस डूबा गीत नहीं है

सारा चमन बना है दुश्मन कोई उसका मीत नहीं है


गाते-गाते यदि बुलबुल के गीत आंसुओं से भर जाएँ

माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएं?