भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौट आई दूर जा कर नज़र / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लौट आई दूर जा कर नज़र
जो गया वो फिर न आया लौट कर

आदमी दर आदमी देखा किए
आदमी आया नही कोई नज़र

बुदबुदाया शहर में आ कर फ़कीर
क्यूँ चला आया मैं जंगल छोड कर

कौन देगा अब उसे मेरा पता
कैसे मैं लाऊँगा उस को ढूँढ कर

फिर मुरव्वत में किया उस पर 'यक़ीन'
फिर समझ बैठा हूँ उस को मोतबर