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होली-13 / नज़ीर अकबराबादी

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बुतों के ज़र्द पैराहन<ref>वस्त्र</ref> में इत्र चम्पा जब महका ।
हुआ नक़्शा अयाँ होली की क्या-क्या रस्म और रहका ।।१।।

गुलाल आलूदः<ref>गुलाल लगे हुए</ref> गुलचहरों के वस्फ़े रुख<ref>अच्छॆ चेहरों और कपोलों</ref> में निकले हैं ।
मज़ा क्या-क्या ज़रीरे कल्क<ref>दग्ध और बेचैन</ref> से बुलबुल की चहचहका ।।२।।

गुलाबी आँखड़ियों के हर निगाह से जाम मिल पीकर ।
कोई खरखुश<ref>नशे में मस्त</ref>, कोई बेख़ुद<ref>बेसुध</ref>, कोई लोटा, कोई बहका ।।३।।

खिडकवाँ रंग खूबाँ पर अज़ब शोखी<ref>चपलता, चंचलता</ref> दिखाता है ।
कभी कुछ ताज़गी वह, वह कभी अंदाज़ रह-रह का ।।४।।

भिगोया दिलवरों ने जब 'नज़ीर' अपने को होली में ।
तो क्या क्या तालियों का ग़ुल<ref>हल्ला, शोर</ref> हुआ और शोर क़ह क़ह का ।।५।।

शब्दार्थ
<references/>

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