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जीता जीवन-हारी मौत / केदारनाथ अग्रवाल

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मैंने तन दे दिया है
परेशानियों को
चिचोरने के लिए
मन दे दिया है मैंने
बंदूक मारने वाले
जवानों को
दूने मन से
देश की लड़ाई लड़ने के लिए
शत्रु को परास्त करने के लिए
कमजोर हो जाएगा
तन तो क्या
मन तो अजय हो जाएगा
इस लड़ाई में
भविष्य के लिए
स्वाभिमान से
नई जिंदगी जीने के लिए
नाव से आदमी बन जाने के लिए
प्रकाश से
अंधकार भगाने के लिए
देह में दीपक जलाने के लिए
नेह में फूल खिलाने के लिए
संकट और अंधकार
एक साथ आए हैं
कुछ दिन में
एक साथ जाएँगे
भारत को छोड़
कहीं और विलय जाएँगे

रचनाकाल: १८-०९-१९६५