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खोखले आदमी / केदारनाथ अग्रवाल
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कम नहीं
बहुत हैं
खोखले आदमी
यहाँ,
वहाँ
घूमते हुए
इस
उस
के
पैर चूमते हुए
दया और दुआ
इस
उस
की
माँगते हुए
जिए बिना
जिए हुए
और मरे बिना मरे हुए
खाल की खोली में
खाली समय
भरे हुए।
रचनाकाल: २९-०९-१९६५