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समय का संविधान / केदारनाथ अग्रवाल
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वृत्त पर वृत्त
खींचता चला जा रहा है मनुष्य
और फँसता चला जा रहा है वह
सीधी लकीर की खोज में
समय का संविधान
कोई रास्ता नहीं देता
ज्यामितिक हो गया है मनुष्य
वृत्त में जीने के लिए
और वृत्त में मरने के लिए
सीधी लकीर में चलने के लिए
रचनाकाल: १३-१०-१९६५