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मेरे वासन्ती सपने वो प्रेम के
जिनको देखूँ मैं हर सुबह नेम से
हिरणों के झुंड से जमा थे सारे
वहाँ उस वन में नदी के किनारे
हरे-भरे वन में गूँजा हलका-सा स्वर
उनकी सतर्कता थी इतनी प्रखर
रेवड़ विकंपित-सा दौड़ गया सुखद
क्षण-भर को चमकी ज्यों विद्युत की लहर
(23 जुलाई 1905)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय