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धूप / विनोद स्वामी
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चांदनी
आंधी और बरसात
मेरे घर आने को
तरसते हैं सब
सूरज की पहली किरण
मेरे आंगन में आकर
खोलती है आंख।
चांदनी को
गोद में उठाकर
यही आंगन
रात भर करता है प्यार।
आंधी का झौंका
भाग कर घुसता है
मेरे घर में
बाबा के फटे कुत्र्ते की
हिलती बांह से
लगता है
आंधी हाथ मिला रही है
बाबा से।
आंधी
आंगन में घंटों
घूमचक्करी खेल कर
मेरे सोते हुए
मासूम बच्चों की
पुतलियों में
रुकने का प्रयास।
मेरी बीवी के गालों
बच्चों की जांघों
मां की झुर्रियों में
बरसात अपने रंग
खूब दिखाती है।
असल में
बरसात में मेरा घर
रोते हुए बच्चे को
अचानक आई
हंसी जैसा होता है।
तब मुझे लगता है
धूप-चांदनी
आंधी और बरसात
छोड़कर
नहीं जाना चाहते
मेरे घर को।