भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीख / विनोद स्वामी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:36, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>बाबै नै पसीनै सूं हळाडोब हुयोड़ो देख बरसणो सीख लियो मेह। </poem>)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाबै नै
पसीनै सूं
हळाडोब हुयोड़ो देख
बरसणो सीख लियो मेह।