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सागर के सीप (कविता) / भारत भूषण

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ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हॅूं
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूॅं
है दर्द-कीट ने युग-युग इन्हें बनाया
ऑंसू के खारी पानी से नहलाया
जब रह न सके ये मौन, स्वयं तिर आये
भव तट पर काल तरंगों ने बिखराये
है ऑंख किसी की खुली किसी की सोती
खोजो, पा ही जाओगे कोई मोती
ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हॅूं
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूॅं