भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंगरेज़ / आलोक धन्वा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 1 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक धन्वा |संग्रह=दुनिया रोज़ बनती है / आलोक धन…)
एक पुरानी कार रंगी जा रही है
छलकने तक रंगी जायेगी।
(1991)