Last modified on 7 नवम्बर 2010, at 18:19

शकीरा का वाका वाका / कुमार सुरेश

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गुज़रती जा रही हो
भिगोती हुई
पानी की तेज़ लहर

रह-रह कर
लगातार प्रज्ज्वलित होती हुई
एक आग

सीसे को काटती हो
शहद की धार
ऐसी आवाज़

अल्हड किशोरी का
छलकता हो आनंद
ऐसा नृत्य

बारिश का हो इंतज़ार
छमाछम बरसे
अचानक

सौंदर्य की देवी
आ गई हो
मूर्ति से बाहर

ईश्वर को कहा जाता है
पूर्ण एश्वर्य
तब लगा वह अपने स्त्री रूप में
प्रगट हुआ है

जब शकीरा ने
वाका-वाका किया

देखो
दावों को झुठलाते हुए
झलका है वह
अन्जान देश की लड़की
शकीरा में