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गीत-विहग उतरा / रमेश रंजक

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हल्दी चढ़ी पहाड़ी देखी
मेंहदी रची धरा
अँधियारे के साथ पाहुना गीत-विहग उतरा ।

गाँव फूल-से गूँथ दिए
सर्पिल पगडंडी ने
छोर फैलते गए
मसहरी के झीने-झीने
दिन, जैसे बाँसुरी बजाता बनजारा गुज़रा।

पोंछ पसीना ली अँगड़ाई
थकी क्रियाओं ने
सौंप दिये मीठे सम्बोधन
खुली भुजाओं ने
जोड़ गया संदर्भ मनचला मौसम हरा-भरा।