भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारा कोई चेहरा नहीं है अपना / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 11 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)
हमारा कोई चेहरा नहीं है अपना
हम बाहरी चेहरा लगाए हैं
आदमी का
आदमी कहलाने के लिए
हमको नहीं मालुम
हमारा
भीतरी हम
बाहरी हम
जो हमें जी रहा है
हम उसे जानते हैं
अपनी इंद्रियों से
उसका जीना
हमारी जिंदगी है
उसका मरना
हमारी मौत
रचनाकाल: १२-०५-१९६८