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उपन्यास-एक / केदारनाथ अग्रवाल
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अँधेरे में
घुसते चले जाते हैं कथाकार
सुरंग का सत्य पकड़ने के लिए
पीछे छोड़कर
जीते जागते जूझते इंसान
रचनाकाल: २५-११-१९६८