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खोपड़ों पर लट्ठ / केदारनाथ अग्रवाल

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खोपड़ों पर
लट्ठ
जमीन पर
लठैत
चलते हैं,

जिंदगी पर
मौत
और
विनाश के
ठगैत
पलते हैं

रचनाकाल: ०९-०४-१९७०