भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परंपरा / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:37, 12 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)
परंपरा
एक ठिकाना है
कुंड में कूदकर
जीने का बहाना है
कुंड में जीना
कुंड का पानी पीना
जानते-बूझते
बेमौत मर जाना है
गहरा कुंड
गहरा नहीं है
कुछेक मुकाबले में
आदमी गहरा कहीं है
रचनाकाल: १८-०४-१९७०