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यदि मैं कहूं / शैलेन्द्र
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यदि मैं कहूं कि तुम बिन मानिनि
व्यर्थ ज़िन्दगी होगी मेरी,
नहीं हंसेगा चांद हमेशा
बनी रहेगी घनी अंधेरी--
बोलो, तुम विश्वास करोगी ?
यदि मैं कहूं कि हे मायाविनि
तुमने तन में प्राण भरा है,
और तुम्हीं ने क्रूर मरण के
कुटिल करों से मुझे हरा है--
बोलो, तुम विश्वास करोगी ?
यदि मैं कहूं कि तुम बिन स्वामिनि,
टूटेगा मन का इकतारा,
बिखर जाएंगे स्वप्न
सूख जाएगी मधु-गीतों की धारा--
बोलो, तुम विश्वास करोगी ?
1946 में रचित