भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वधू / इवान बूनिन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:14, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=इवान बूनिन |संग्रह=चमकदार आसमानी आभा / इवान ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: इवान बूनिन  » संग्रह: चमकदार आसमानी आभा
»  वधू

तब कुँवारी कन्या थी मैं
           और दो चोटी करती थी
खिड़की के निकट बैठ मैं,
           बाहर देखा करती थी

वह रात ख़ूब खिली-खिली थी
           तारों का था ज़ोर
दूर समुद्र से उठ रहा था,
           लहरों का धीमा शोर

अर्धनिद्रा में डूबी थी स्तेपी,
           धीरे से काँप रही थी
रहस्यमय स्वर में अपना
           मरमर... आलाप रही थी

तुमने पूछा पहले तुमसे
           आया कौन मेरे पास ?
किसने फेरों से पहले मुझे
           घेर लिया उस रात ?

किसने उस रात किया था
           मेरी आत्मा को चूर ?
स्नेह, प्यार और उत्पीड़न से
           किया मुझे भरपूर

किसके समक्ष समर्पण किया
           मैंने उदास होकर ?
जुदा होने से पहले उससे,
           यूँ तेरा विश्वास खोकर

(02 सितम्बर 1915)