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अब आगे क्या होगा, भला / इवान बूनिन
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अब आगे क्या होगा, भला,
क्या लम्बी सुखद राह होगी
शांत नज़र देखने की जिसे
मन में मेरे चाह होगी
जवानी धड़क रही थी उसकी
सहज-सरल स्वरों में
धीरे-धीरे साँस ले रही वह
उज्ज्वल उन पलों में
कॉलर कमीज़ का गर्दन से उसकी
छिटक गया था दूर
हलकी ख़ुशबू उसके बालों की
मुझे करे नशे में चूर
महसूस करूँ मैं उसकी साँसें
उमंग उन बीते पलों की
लौट रही है मन में फिर से
याद उन मीठे क्षणों की
अब वहाँ अतीत में क्या बचा है
देखूँ विषाद से घिर कर
नहीं, आगे की ओर नहीं अब
देखूँ मैं पीछे फिर कर
(15 सितम्बर 1922)