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यहाँ सिर्फ़ पत्थर ही पत्थर / इवान बूनिन
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यहाँ सिर्फ़ पत्थर ही पत्थर,
रेत और नंगे पहाड़
वहाँ दूर आकाश से झाँके,
चंदा बादलों के पार
यह रात है किसकी, रानी,
सिर्फ़ हवा और हम
और निर्दयी समुद्री लहरें,
हम दोनों के संग
यह हवा भी झक्की कितनी
मथ रही लहरों को
आवेश में है, गुस्से में गहरे,
ठेल रही पैरों को
तू आ, बैठ जा सट के मुझ से,
ओ मेरे दिल की रानी !
मेरी प्रिया, जानम है तू,
तू मेरी दिलबर, जानी !
प्यार मुझे है तुझसे कितना,
मैं यह समझ न पाऊँ
ले जाए यह हमें किस दिशा,
किस जीवन की छाँव
यह रात अँधेरी उधमी-सनकी,
हंगामी-प्रचण्ड-तूफ़ानी
मैं विश्वास करूँ ख़ुदा में,
सब उसकी मेहरबानी
(1926)