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गिरजे की सलीब पर बैठा मुर्गा / इवान बूनिन
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आसमान में तैरे-भागे,
ज्यूँ शतरंज-बिसात पे हाथी
बैठा धरती से इतना ऊँचा,
लगे बादलों का साथी
नभमंडल तक पीछे छूट रहा है,
मुझे लगे है ऐसा
पर वह आगे को बढ़े मस्त,
झूमे गाता ही रहता
गीत ज़िन्दगी के गाता वो,
गीत मौत के गाता
दिन गुज़रते इतनी जल्दी,
एक आता एक जाता
वर्ष गुज़रते भाग-भाग कर,
सदियाँ भी बह जातीं
समय तैरता नदियों जैसा,
बादल जैसा, रे साथी !
गीतों में वह यह बतलाता,
जीवन मोहक बहकावा
हमारे लिए भाग्य जो लाता,
वे पल भी एक छलावा
पूत-पौत्र, पुश्तैनी-घर सब,
मित्र-बंधु और सम्बन्धी
शेष यहीं रह जाएँगे सब,
तू भूल न जा, ऐ बन्दे !
सिर्फ़ मृत्यु-निद्रा यह गहरी,
अमर-अनादि और अविरल
सतत रहेंगे प्रभु छाया,
प्रभु मन्दिर और सलीब सरल
(12 सितम्बर 1922, अम्बुआज़)