भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी रात बीती है आधी / इवान बूनिन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=इवान बूनिन |संग्रह=चमकदार आसमानी आभा / इवान ब…)
|
अभी रात बीती है आधी
मैं घर से बाहर निकल आता हूँ
ठंड से जमी हुई धरती पर
अपने ठक-ठक क़दम बजाता हूँ
बग़िया काली है, तम छाया है,
ऊपर नभ में छितरे हैं तारे
पुआल ढकी छत चमक रही है,
इस बूढ़े खूसट घर की हमारे
हिम झरे है, इससे रंग उसका
कुछ सफ़ेद हो गया है
अर्धरात्रि में शोकाकुल हो जैसे
वह कहीं खो गया है
(नवम्बर 1988)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय