भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसा पावन प्यार तुम्हारा / बुलाकी दास बावरा

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:41, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>ऐसा पावन प्यार तुम्हारा जैसे गंगा बीच किनारा तुम आभा हो मैं छा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा

तुम आभा हो मैं छाया हूँ,
तुमसे ही कुछ हो पाया हूँ,
जन्म जन्म की उपलब्धी तुम
तेरी शक्ति एक सहारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जेसे गंगा बीच किनारा

कमियों का संसार लिये हूँ
पीडा का आगार लिये हूँ
सम्बल की एकाकी सीमा
तिस पर तेरी सुषमित कारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा

किस बन्धन से बांधूँ तुमको ?
किस साधन से साधूँ तुमको ?
तेरा साया शुभ्र ज्योत्सना
जिसकी महिमा लख-लख हारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जेसे गंगा बीच किनारा

जीवन की हमराज तुम्ही हो
जीने का अन्दाज तुम्ही हो
संभव तुमसे संवर-संवर कर
किंचित दूर करूं अंधियारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा