भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठूंठ री मुळक / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:43, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>म्हारी आंख्यां में अटकगी रूंख री मुळक दीठी म्हनै रूंख रै सहार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हारी आंख्यां में अटकगी
रूंख री मुळक

दीठी म्हनै
रूंख रै सहारै ऊभी
     बेलड़ी
आपरै मीठै फळां री सोरम सागै

कैवै हो ठूंठ-
ऊभी रह
इयांई ऊभी रह

आ सुण बोली बेल-
देखो तो सरी
बूढै सारै रो राम निसरियो है !