भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कई सूरज कई महताब रक्खे / संजय मिश्रा 'शौक'
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:52, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
कई सूरज कई महताब रक्खे
तेरी आँखों में अपने ख्वाब रक्खे
हरीफों से भी हमने गुफ्तगू में
अवध के सब अदब-आदाब रक्खे
हमारे वास्ते मौजे-बला ने
कई साहिल तहे-गिर्दाब रक्खे
उभरने की न मोहलत दी किसी को
चरागों ने अँधेरे दाब रक्खे