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तितलियाँ पकड़ने के दिन / अनिरुद्ध नीरव

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तितलियाँ पकड़ने के दिन
बीत गए मरु की यात्राओं में

       क्या होगा
       अब कोई
       छींटदार पंख लिए
       आँगन की
       थाली में
       व्योम का मयंक लिए

बिजलियाँ
जकड़ने के दिन
बीत गए तम की व्याख्याओं में
        नाज पलीं
        त्रासदियाँ
        प्यास पली लाड़ से
        फिर भी
        खारी नदियाँ
        स्वप्न के पहाड़ से

झील के लहरने के दिन
बीत गए तट की चिन्ताओं में

        काफ़ी था
        एक गीत
        एक उम्र के लिए
        लगता है
        व्यर्थ जिए
        पी-पी कर काफ़िये

शब्द में
उतरने के दिन
बीत गए व्योम की कथाओं में ।