भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भरे नयन-सी / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध नीरव |संग्रह=उड़ने की मुद्रा में / अनिर…)
अन्तरिक्ष से धरती
भरे नयन-सी लगती है
तीन भाग डबडब-सा
खारा जल मँडराता है
थोड़ा-सा भू अँचल
जिस पर दुख हरियाता है
कोई सपन सलोना दीखे
बात सपन-सी लगती है
हरे दाने के ऊपर
भर पेट का खाता है
हर बरगद के नीचे
गुलशन ज़ख़्म खिलाता है
टेढ़े न्याय तुला पर
कोई आँख वज़न-सी लगती है
सारा मीठा पानी
मरुथल बाँट रहे भैया
खेत मलाई वाले
कुत्ते चाट रहे भैया
शस्य श्यामला की वत्सलता
निचुड़े थन-सी लगती है
ये विष के चंदोवे
कालकूट होती नदियाँ
नए धान्य थाली में
आत्मघात की नव विधियाँ
अर्थ अराजक होड़ हवा में
कढ़ते फन-सी लगती हैं ।