भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संजय आचार्य वरुण

Kavita Kosh से
नरेन्द्र व्यास (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: मुझसे कह देना जब उजास की बात करो तो मुझ से कह देना जब धरती पर गंगाज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझसे कह देना

जब उजास की बात करो तो मुझ से कह देना

जब धरती पर गंगाजल सी किरणें उतरे आकर सारा कल्मष धुल जाता है ताप सूर्य का पाकर

कुदरत की जब कहो कहानी मुझसे कह देना

घर की देहरी पर छोटा सा दीप हमेशा धरना उसका काम यही होगा बस पल-पल तम को हरना

अंधियारे से लडना हो तो मुझसे कह देना

एक पलक में चाँद छुपा है एक पलक मे सूरज कई समन्दर सबके भीतर इसमें कैसा अचरज

जब काया का चित्र उकेरो मुझसे कह देना

जिसने अपने भीतर-भीतर खुद को ही ललकारा खुद को किया पराजित जिसने उससे ये जग हारा

भरनी हो हुंकार अगर तो मुझसे कह देना

जीवन की बारहखडी बांची शब्द नहीं घड पाया जितना-जितना भरा स्वयं को उतना खाली पाया

अर्थ उम्र का मिल जा तो मुझसे कह देना

एक किनारे सत्य खडा है एक किनारे मेला बीच में है इस दुनिया आता जाता रेला

चलना हो उस पार अगर तो मुझसे कह देना।