भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिसे कुछ नहीं चाहिए / रमानाथ अवस्थी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
जिसे नहीं कुछ चाहिए, वही बड़ा धनवान ।
लेकिन धन से भी बड़ा, दुनिया में इन्सान ।
चारों तरफ़ मची यहाँ भारी रेलमपेल ।
चोर उचक्के ख़ुश बहुत, सज्जन काटें जेल ।
मतलब की सब दोस्ती देख लिया सौ बार ।
काम बनाकर हो गया, जिगरी दोस्त फ़रार ।
तेरे करने से नहीं, होगा बेड़ा पार ।
करने वाला तो यहाँ, हैं केवल करतार ।
कर सकते हो तो करो, आत्मा से अनुराग ।
यही सीख देता हमें, गौतम का गृह-त्याग ।