भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी रचना के अर्थ / रमानाथ अवस्थी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।

मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।

आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं
जो भी सुंदर हो समझा देना ।

पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की
जो जीने को मज़बूर कर रही है
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है ।

दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना ।

कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
संकेत कर रहा नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा ।

पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
यह बात समंदर को समझा देना ।
चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।

मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।