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सारी रात / रमानाथ अवस्थी
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धीरे-धीरे बात करो सारी रात प्यार से ।
भोर होते चाँद के ही साथ-साथ जाऊँगा
हो सका तो शाम को सितारों के संग आऊँगा
धीरे-धीरे ताप हरो प्यार के अंगार से |
तन का सिंगार तो हज़ार बार होता है
किंतु प्यार जीवन में एक बार होता है
धीरे-धीरे बूँद चुनो ज़िन्दगी की धार से ।
कोई नहीं विश्व में जो प्यार बिना जी सके
और गीत गाने वाले अधरों को सी सके
धीरे-धीरे मीत खींचो प्राण के सितार से ।
देख-देख हमें तुम्हें चाँद गला जा रहा
क्योंकि प्यार से हमारा प्राण छला जा रहा
धीरे-धीरे प्राण ही निकाल लो दुलार से ।