बड़े मुँह वाला लाउडस्पीकर चल दिया / सुशील राकेश
सुबह की तरह
सब के माथे पर दोपहर-सा
चढ़ गया पारा
सब बेलौस होकर चरस / गांजा / भांग
से करते सामाजिक उत्थान
सारे कामगार इस प्रदूषण से लबालब हैं
ख़ूब फल-फूल रहा है
लकड़ी वाली दुकान का लगडा ।
कहते हैं कि इस गली के दोनों पाटों पर
बने परिदों के घोसले में
नहीं है कोई मीटर
बस कटिया-दुदुभीं से
बिजली संवाद स्थापित करते हुए
एक पाँव घर
और दूसरे पाँव से शहर नापते हैं.
लगा तेजाब की बूदें
छिटक कर हर घर को जला देगी
तिलमिलायेगा फैला ठीकरा ।
बहुत खाली हो गया है
देश का सम्मोहन
बस महंगाई से लबरियाते बच्चे
बिजली विभाग को चूना लगाते खजुहट कुत्ते
मेरा अनुमान है / इसी का परिणाम है
अँग्रेज़ियत फ़रमान
मछुवारे का फैल रहा जाल
कौन जाने ? कौन मछली ?
फँसेगी इस जाल में ।