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रुख़ हवाओं का समझना चाहिए / गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’

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रुख़ हवाओं का समझना चाहिए ।
बादलों को फिर बरसना चाहिए ।

आँख ही यदि रास्ता देखे नहीं,
पाँव को ख़ुद ही संभलना चाहिए ।

क्या असर होगा फक़त यह सोचकर,
लफ़्ज़ को मुँह से निकलना चाहिए ।

कौन कहता है नहीं रखती असर,
आह को दिल से निकलना चाहिए ।

बात जीने की या मरने की नहीं,
वक़्त पर कुछ कर गुज़रना चाहिए ।

देख कर आँसू किसी की आँख में,
दिल अगर है तो पिघलना चाहिए ।

है कहाँ महफ़ूज़ राहें अब ‘अरुण’,
सोचकर घर से निकलना चाहिए ।