सामंत की बंदूक गायब / नवारुण भट्टाचार्य
अद्भुत गोल चाँद के छद्म वेश में
रहस्यमय मिट्टी और तिनके, खस के इस मंडल में आकर
ओस भीगी चिड़िया को चोंच पर कुहरे का स्पर्श दिया
जाओ, इस फूस के गट्ठर को लेकर चले जाओ
कुम्हार पट्टी नींद में अचेत है
सामंत की बंदूक ग़ायब
मटमैली नदी के हृदय को मटमैली धोवन लेकर
घोंघों और कछुओं की धारवाली नदी के पास जाकर
कहाने को बढ़ा-चढ़ाकर
अपार समुद्र बना दिया
हे समुद्र, समुद्र -आकाश
क्यों तुम्हें लगता है कि ये सारी घासें
मिट्टी में बिंधे हुए भाले हैं
असंख्य लक्ष्य-भ्रष्ट तीर हैं
या शांत, डरे हुए, रात में सोते पक्षी हैं
ऐसे अँधेरे में स्तनवृतों में उतरता है दूध
मैदान के बीच रोशनी लेकर आती है ट्रेन
बच्चे की नींद में ट्रेन की आवाज़ दूर चली जाने पर
सुदूर एक तारा चकराता हुआ टूटता है
कितने दहक रहे हैं उसके होंठ
जैसे कोठरी में किसी ने रखा हो बारूद
अभी जागने वाला है
चाँद के छद्मवेश में वह अद्भुत गोला
तुम उपवास के बाद का अन्नपिंड होना चाहते हो
चाँदनी में क्या रेडियम होता है
सामंत की बन्दूक ग़ायब