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उम का पचासवाँ वर्ष / मनीष मिश्र

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उम्र का पचासवाँ वसंत आता है अचानक
और साथ लाता है-
घुटनों में हल्का सा दर्द
बालों में मु_ी भर चाँदी
आँखों में धुँधले से बादल
और कमर की बेल्ट में एक और काज।
उम्र का पचासवाँ पड़ाव
चुपचाप लाता है
जीतने की अद6य चाहत
हारने का लरजता आक्रोश
अनुभव की स6हाल कर रखी कतरनें
और अधेड़ लालसाएँ।
उम्र के पचासवें वसंत में
दूर खड़ा दिखता है बचपन
धुँधली सी मगर दिखती है अपनी मृत्यू।
बस बचा रह जाता है
बीत गये क्षणों का अफसोस
और अपने होने का अचरज।