भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहं / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 24 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)
न द्वार खुला
न दीवार गिरी
हम
मन की मछली
मन के तालाब में मारते रहे
अहं का जाल
स्वयं को
छलने के लिए
पसारते रहे
रचनाकाल: १२-१०-१९७०