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सानेट/ मोहन आलोक

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ऐ आजकाल रा आलोचक ,श्री ऐ छोरा
कोई कविता री,कहाणी री,एकाध मांड
’र ओळी,अर अब बणियोडा साहित्य सांड
पग चोडा कर-कर चालै जिका घणा दो’रा
आंनै बूझो जे थे साहित रो अरथ,बैठ
अर बूझौ भई ! समीक्सा कांई चीज हुवै
तो ऐ कै’सी साहित्यकार री खीज हुवै
एक दूजै पर,आंरी लाधैली आ ही पैठ
ऐ इणी पैठ पर करिया करै है,गरज़-गरज़,
आपरी परख, नूंई-सी कोई फ़िल्म देख
रात नै ,दिनूगै गाणा गा-गा लिखै लेख
अर ढूंढै थारी कवितावां रै मांय तरज़ ।
जे आप इण री मितर-मंडली रा सदस्य
नीं हो तो नहीं आपरै लेखन रो भविस्य ।


{सौ सानेट"-पेज-६४}