भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धंवर पछै सूरज (कविता) / निशान्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:54, 26 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCatKavita…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आखै सियाळै
धंवर ई धंवर

जी दोरौ हुयो घणो
पण
इत्तो सतोख ई हुयो
कै तरसणो नीं पड़ियो
तावड़ै बैठण सारू ।

दस दिन री
धंवर पछै
आज थे निकळिया
तो लाग्यो-
बसंत
आयग्यो है ।